Tuesday, May 18, 2010

भला मैं मानु किसकी बात...

आँख कहे कि दिन निकला है दिल ये कहे है रात
भला मैं मानु किसकी बात
मंदिर चुप है मस्जिद चुप है नफरत बोल रही है,
और सियासत ज़हर कहाँ तक पंहुचा तोल रही है
कुछ के लिए ये आग का मौसम कुछ के लिए बरसात
भला मैं मानु किसकी बात...???

औरत के सम्मान से बढ़कर औरत कि मजबूरी
मर्दा को पूरा करने में ही औरत हुई अधूरी
जनम जनम उसकी हो जाये जिसको थमा दो हाथ
भला मैं मानु किसकी बात...???
भला मैं मानु किसकी बात...???

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