Tuesday, May 18, 2010

आहूति


दफ़न कर दिया-
एक और नन्ही कली का सपना,
कल रात गाँव मे,
एक क़त्ल जो हुवा है …
रंगी हुई साड़ी मे,
रोती बिलखती माँ की -
करुणा पर जस्न जो हुवा है.

आँखों मे शायद,
रेत ही रही होगी,
पानी जो होता -
तो जख्म भर जाता.
वो चीखती रही चिल्लाती रही बरसों-
उसकी लाचारी पर शोक मन जाता.

अब भी वो सोचते हैं,
लड़की शाप है सदी का.
अब भी वो सोकते हैं-
हर जलधार उस नदी का.

जीते हैं वो!
नए युग का कारवां ले कर,
मगर मरते हैं हर पल वो,
अपनी बुझदिली का आसमान ले कर.

अब हेराँ नहीं हूँ मै,
ज़माना अब भी नहीं बदला है,
माँ की आरती उतारते थे जो,
उन्ही ने!
माँ के हृदय को कुचला है.

ताज्ज़ुब तो तब हुआ,
जब पता चला-
षड़यंत्र मे एक-
माँ भी शामिल है …

वो खुश है अब ..क्यूंकि,
जंग मे हरा के जो आई है ..
एक मासूम सी माँ की,
आहुति देकर जो आई है.

----- Pradeep Pathak

1 comment:

  1. अर्ज़ किया हे
    लिखू तो कैसे लिखू , खत्म तो ये सिलसिला होगा नहीं
    रावण भी अब जब आज के इंसानो से लीला में तीर खा मरता हे
    वो भी अब सोचता होगा इनमे राम जैसी छवि वाला कोई हे कहा

    ReplyDelete