
बिहार के विधानसभा चुनावों ने न सिर्फ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रचंड बहुमत देकर दोबारा सत्ता में पहुंचाया है बल्कि महिलाओं को भी विधानसभा में 1962 के बाद सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व मिला है. 32 महिलाएं एमएलए बनी हैं.
खास बात यह है कि चुनाव में उतारे गए उम्मीदवारों में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 8.74 प्रतिशत ही थी. साढे पांच करोड़ मतदाताओं के बीच पचास प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाली बिहार की महिलाओं में से बहुत कम ही पुरूषों के दबदबे वाली राज्य की राजनीति में जगह बना पाई हैं.
अगर पांच मुख्य पार्टियों सत्ताधारी जेडीयू और बीजेपी, विपक्षी आरजेडी, एलजेपी और कांग्रेस के साथ वामपंथियों के उम्मीदवारों की फेहरिस्त पर नजर डाले तो कुल 90 महिलाओं को टिकट दिया गया. जेडीयू ने सबसे ज्यादा 24 और बीजेपी ने 11 महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा. वहीं मौजूदा स्वरूप में महिला आरक्षण बिल का विरोध करने वाली आरजेडी ने छह और एलजेपी ने सात महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया.
इससे जाहिर होता है कि महिलाओं की तरक्की की राह में कितने रोड़े हैं. सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता कहती हैं कि महिलाओं के लिए अब भी घर की चार दीवारी को ही बेहतर समझा जाता है और राजनीतिक के अखाड़े से उन्हें आमतौर पर दूर ही रहने को कहा जाता है. वह कहती हैं कि अगर कुछ महिलाएं सफलता की सीढ़ी चढ़ भी लेती हैं तो अपने ऊपर घर वालों की तरफ से होने वाली ज्यादतियों पर वे चुप ही रहती हैं.
बुधवार को आए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक सत्ताधारी जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने 206 सीटें जीतीं जबकि विपक्षी आरजेडी-एलजेपी गठबंधन को 25 सीटों से ही संतोष करना पडा. कांग्रेस के खाते में चार सीटें आई जबकि और झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई को एक-एक सीट मिली है. अन्य के हिस्से 6 सीटें आई हैं
No comments:
Post a Comment