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Thursday, November 25, 2010

i am a woman

I am

a girl,
a woman.

a wife,
a mother.

I work,

I live,
I love.

I care.

I dare...

Sunday, May 16, 2010

माँ अब लौट चलें


माँ अब लौट चलें

मैं जानती हूँ माँ,
कि तुम मुझे बहुत प्यार करती हो।
तभी तो यहाँ आई हो।
माँ! इस दुनिया में ,
जहाँ तुम्हें सदैव अपने,
औरत होने का कर्ज़ चुकाना पड़ा है,
अपनी इच्छाओं को सुलाना पड़ा है,
हर पल इस अहसास को जीवित रखना पड़ा है
कि तुम एक लड़की हो/ एक औरत हो
तुम पुरूष की अनुगामिनी हो,
तुम एक भोग्या हो,खर्चे की पुड़िया हो।
मै जानती हूँ माँ,
जब तुम पैदा हुई थीं,
तब थाली नहीं बजी थी।
तुम्हारे होने की खबर ,
शोक सभा में तब्दील हो गई थी।

तुम्हारी दादी ने कहा था पिता से,
’खर्चा करने को तैयार हो जा,
अभी से बचाना शुरू कर,’
यही बात मेरी दादी ने भी कही थी,
मेरी बड़ी दीदियों के जन्म पर
क्या लड़के के पैदा होने में दर्द नहीं होता?
क्या लड़के को पालने में खर्च नहीं होता?

जानती हूँ माँ!
कितना सहा है तुमने अपने वक्ष पर
समाज के कटु-व्यंग्यों के तीरों को।
इसीलिए
तुम आज यह सब कर रही हो,
तुम चाहती हो कि मुझे वह सब न झेलना पड़े
जो तुमने और दीदियों ने झेला है।
तुम चाहती हो कि मेरा जन्म मातम के माहौल मे न हो,
इसीलिए तुम यहाँ आई हो न माँ?
पिता की आँखों में भी ,
मुझे यही कातरता नज़र आ रही है\
तुम्हारी आँखों में तैरते अनकहे शब्दों के कण
तुम्हारे चेहरे की उदासी,
बार-बार सबकी निगाहें बचा,
पेट पर अपना स्नेह भरा स्पर्श देना,
बार-बार प्रभु से क्षमा-याचना,
मुझसे बार-बार माफी माँगना,
यह जता रहा है कि
माँ, तुम मुझसे कितना प्यार करती हो।
मैं, तुम्हारी बेबसी को समझ रही हूँ,
यह भी जानती हूँ कि तुम यहाँ,
आई नहीं , लाई गई हो
तुम्हें बाध्य किया है इस जग ने,
तुम्हारे अनुभवों और तकलीफों ने,
पर, तनिक सोचो माँ!
डरो नहीं,मैं उतनी कमज़ोर नहीं,
जो इस दुनिया का सामना नहीं कर पाऊँगी,
मुझे बस एक बार–बस एक बार,
इस धरती पर आने तो दो माँ,
मैं विश्वास दिलाती हूँ ,
मैं तुम्हें इस तरह घुट-घुट कर मरने नहीं दूँगी
मैं औरतों को एक नई सोच दूँगी।

उनकी आँखों में नए सपने दूँगी।
तुम्हारी कोख में रहकर,
मैंने तुम्हारी वेदना को समझा है, जाना है।
तुम्हारी हर सोच, तुम्हारा हर आक्रोश
तुम्हारी बेचैनी, तुम्हारी हर बेबसी को
जिसे तुमने महसूसा है,
मैं वाणी दूँगी
बस! एक बार--- थोड़ा सा विद्रोह कर दो,
मुझे तुम्हारी कोख का कर्ज़ चुकाने दो माँ,
लौट चलो माँ, यहाँ से एक बार
मैं जानती हूँ माँ!
तुम मुझे बहुत प्यार करती हो।
--मंजू भटनागर 'महिमा'